स्वामी विवेकानंद◆◆पंकज प्रखर◆◆

स्वामी विवेकानंद◆◆पंकज प्रखर◆◆
पंकज प्रखर की कविताएं

स्वामी विवेकानंद.

घन-घोर तिमिर को भेद यहाँ नव गीतों का स्वर छन्द बनो।
हे  भारत   के   युवा   सिपाही     उठो   विवेकानंद   बनो।।

विश्व  गुरु  बन  सकते  हो  तुम  बस इतना सा ध्यान रखों।
उस  युवा  पुरोधा  के  सपनों का मन मे हिन्दोस्तान रखों।।

जब  अंधकार  अंगणाई  ले  कर  तरुणाई   पर  छाया  था।
जब  भोर  कालिमा  सी  लगती  थी युवा वर्ग घबराया था।।

जब - जब  गोरो  के आंगन  में भारत  का  सूरज ढ़लता था।
तब-तब नव वीर सपूतों को यह  दृश्य  समूचा  खलता  था।।

जब पश्चिम ने यह भ्रम पाला हम सकल विश्व पर राज करेगे।
दुनिया भर के बौद्धिक बल में सबसे आगे हम्ही रहेगे।।

उन्हें सदा यह लगता था भारत मे कुछ भी ज्ञान नही।
ये ज़ाहिल,अनपढ़,पागल है दुनिया मे इनका मान नही।।

बस जाती-धर्म के झगड़े में पड़तें हैं करते तर्क नही।
चाहे इनको कुछ भी कह दो पड़ता इनपर कुछ फर्क नही।।

तब सभा मध्य में एक युवा हुंकार भरा और बोल उठा।
उस युवा शक्ति के वेग के सन्मुख सारा मंजर डोल उठा।।

सब देशों का मान रखा अभिमान रखा सम्मान रखा।
पर दुनिया भर के उच्चशिखर पर अपना हिन्दोस्तान रखा।।

फिर मधुर-मधुर मुस्कान लिए संवाद किया उदगार भरा।
उसकी वाणी को सुन कर के गर्वित थी मानो आज धरा।।

वेदों का जब जब पृष्ठ खुला तब तब दुनिया फिर मौन हुई।
फिर शब्द-शब्द निःशब्द हुयें वह सभा समूची गौण हुई।।

मस्तक का तेज उभर आया फिर धन्य किया परिपाटी को।
जिसकी रज में वह खेला था फिर नमन किया उस माटी को।।

उस युवक सिंह पर गर्व हुआ तब अपनी भारत माता को।
नत मस्तक हो गये सभी सुन कर भारत की गाथा को।।

भारत की जय,भारत की जय,भारत की अब तो जय होगी।
दुनिया भर के जय घोषों में भारत की सदा विजय होगी।।

बातों को उसकी सुन करके तब पूरा विश्व अचंभित था।
उसके मुख मंडल पर उभरा जो तेज सूर्य का अंकित था।।

थी धन्य-धन्य वह धन्य धरा जिस पर वह वेद पुराण पढ़ा।
दुनिया भर के शीश पटल पर वेदों का सम्मान जड़ा।।

फिर पुत्र प्रेम को लख कर के भारत माता मुस्काई थी।
उस युवा तेज सा"प्रखर" पुंज को अपने गले लगाई थी।।

गर्वित थी शीश प्रबल कर के वह बोल उठीं यह नंद है रे।
कल सारे इसको पूजोगे अरे यही विवेकानंद है रे।।

रचनाकार:-पंकज "प्रखर"
संपर्क सूत्र:-9473998213
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